जिससे लोग भ्रमित ना हो, दिमाग पर अनावश्यक बोझ ना पढ़े और अपना जीवन बेहतर ढंग से जी सके । सैक्स की वैज्ञानिक ढंग से व्याख्या और सैक्स शिक्षा अच्छे ढंग से जनता तक पहुंचाई जाए तो सैक्स संबधी रोगो का नामोनिशान मिट जाएगा, और रोगो से बचा भी जा सकता है | सैक्स के बारे में सही शिक्षा या सही ज्ञान होने और शारीरिक रचना का ज्ञान होने से मनुष्य भ्रम और अज्ञानता से निकलकर सुखमय और तनाव रहित जीवन बिता सकता है। सैक्स गंदा है, सैक्स पाप है, सैक्स घृणित कार्य है, सैक्स के बारे बात नहीं करनी चाहिए। जिस काम में जितना रहस्य होगा ठगी, लूट उतनी ज्यादा होगी। सैक्स आनंद की तुलना इस दुनिया में किसी आनंद से नहीं की जा सकती । ऐसे डाक्टर जो लोगो को गुमराह करके अपना धंधा चलाते है इन्हे रोकने वाला कोई नहीं था। लोगो को गुमराह करने से रोकने वाला कोई नहीं था| सैक्स की बेहूदा तस्वीर सामने लाने वाले प्रचार का माध्यम इनके पास था और राष्ट्रीय अखबारे जो दिखाबे के तौर पर समाज के भले की बात करती है
उन्हें भी विज्ञापनों से मतलब था क्योंकि उन्हें भी रूपया से ही प्यार था। ज्यादा से ज्यादा विज्ञापन ज्यादा से ज्यादा रूपया कमाने की होड़ में हर रोज सैक्स के विज्ञापनों की भरमार हो गई और जो इन्हें पढ़ता वो ही रोगी। इन लुटेरो का इतना दोष नहीं जितना अखबारो का, आम आदमी के दिमाग में यह गलतफहमी होती है कि जो अखबारो में छपता है सच होता है, क्योंकि अखबारो का राष्ट्र के प्रति दायित्व होता है कि समाज को सही जानकारी मिल सके। लेकिन उसे यह नहीं मालूम होता कि यह विज्ञापन है और विज्ञापनो का काम ही यही है कि लोगो को उल्लू बना कर अपना उल्लू सीधा ‘करना। अखबार वालो का इतना ही काम है कि रूपया लिया और विज्ञापन छाप दिया। लेकिन उनकी भी नैतिक जिम्मेवारी होती है कि क्या छापे और क्या ना छापे। बात फिर वही आ जाती है कि सभी को रूपया चाहिए, और रूपये के लालच में ही झूठ ज्यादा छापते है। सभी सिर्फ एक काम पर ही लगे है रूपया-रूपया और रूपया। इसके लिए ईमान, धर्म, जमीर, देश सब कुछ
खत्म करना पड़े तो कर दो लेकिन रूपया आना चाहिए। इन समाज के ठेकेदारों से यह पूछे कि जब युवा पीढ़ी पूरी तरह ऐसे बेहूदा प्रचार से निकम्मी हो जाएगी, ऐसे प्रचार से आपका बच्चा भी चपेट में आ सकता है तो रूपया कया काम आएऐगा। यदि हम विष बांट रहे है तो वहीं हमें भी मिलेगा। कुदरत का नियम है कि जैसा करोगे वैसा ही भुगतना पड़ेगा । लोगो को गुमराह करने के लिए बड़े से बड़ा विज्ञापन क्योंकि इस काम का सबसे सफल तरीका है जितना बड़ा विज्ञापन उतना बड़ा डाक्टर और जो इनके पास जाए उतनी
मोटी मुर्गी ।इसके बाद तो विज्ञापनो की बाढ़ ही आ गई, कोई भी तरीका जैसे कि दीवारों की पेटिंग, पर्चे बांटना, छोटी किताबे हर रोज हजारो की मात्रा में बांटना । इनकी चली चाले कामयाब हो गई और समाज गुमराह हो गया,क्योंकि जो वो पढ़ता था या सुनता था उससे डरता था और सैक्स को गुप्त ही.रखना चाहता था, सिर्फ यही बात दिमाग में आती थी कि किसी को मालूम ना हो कि उसे सैक्स का कोई रोग है । बच्चो को जैसी बाते सुनने को या पढ़ने की सारा जीवन उसी पर आधारित होता है और सोच भी वैसी बन जाता है ।
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