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आधुनिक भौतिकवादी युग में, लोगों ने सच में विश्वास खो दिया है। यही कारण है कि रोगों और दुःखों में वृद्धि हो रही हैं। भ्रामक विज्ञापनों ने पहले ही झूठ को सच बना दिया है।
आज के भौतिक युग में मनुष्य के दुःखों के कारण निम्नलिखित है।
- सच्चाई पर भरोसा नहीं और झूठ किसी का भला नहीं करता जब तक सच्चाई समझ आती है बर्बादी हो चुकी होती है।
- अधिकतर लोगों की सोच ऐसी बन चुकी है कि अपने आप को भगवान मानने लगे है और भगवान पर भरोसा नहीं। ऐसी सोच का परिणाम है कि सब कुछ होते हुए भी दुःखी है। आर्थिक, मानसिक, शारिरिक तौर पर हर मनुष्य किसी ना किसी कारण से दुःखी है।
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हर मनुष्य की सोच ऐसी बन चुकी है कि मै जो चाहता हूं वही होना चाहिए चाहे प्रमाणिक और वैज्ञानिक ना हो। जो उसकी इच्छा पूरी करने का ढोंग करेगा वो उसी के पास जाऐगा। इसी कारण लोगों का आर्थिक, मानसिक, शारिरिक शोषण होता है। कद बढ़ाने, मोटे होने, वजन घटाने,
शारिरिक अंगो को मोटा, लंबा करने ये लोगों को लूट कर मानसिक रोगी बनाने के तरीके है लेकिन लोग रोजाना लुट रहे है। सही जानकारी देने वाले को ऐसे लोग कहते है कि इसे कुछ नहीं मालूम। गुमराह करने वाले, गलत जानकारीयां देने वाले डाक्टरों के भेष में लुटेरे मंत्री जी के साथ फोटो खिंचवा कर अखबारों, टैलीविजन के विज्ञापनों में रोजाना देते है जिससे वो धन कुबेर बनते जाते है। इन्हे देख कर गुमराह करने वाले ही ज्यादा पैदा होंगे। क्ंयोकि वो भी सोचते है कि धनवान बनने का आसान रास्ता सही है चाहे कितने ही लोग आत्महत्या करें और उनके परिवार उजड़े और कितने ही लोग मानसिक रोगी बने। आज के युग में इंसान की नहीं धन दौलत की इज्जत है।
ठगी के तरीकेः डाक्टरों के भेष में लुटेरे ठगी के नये-नये तरीके अपनाते है और लोगों को मूर्ख बनाते है।
जो दवाएं ठगो द्वारा बताई आस पास की 2 या 3 कैमिस्ट की दुकानो से मिलें तो उसमें घोटाला है। अच्छी कंपनी की दवा हर दुकान से मिलती है। जान बूझ कर ऐसी दवा लिखना कि जो बहुत महंगी हो या जिसका नाम भी आपने मुश्किल से सुना हो या बाजार में ढूंढने पर भी ना मिलती हो जैसे की हीरा भस्म, गैंडे के सींग का चूर्ण, कायाकल्प बूटी, सांडे का तेल, इश्क अंबर। यह दवाएं सिर्फ इसलिए लिखी जाती है कि रोगी के दिमाग पर यह प्रभाव पढ़े कि यह दवाए कीमती है और महंगी है। ये दवाएं असरकारक नहीं होती।
- 1. ऐसी घटिया कम्पनी जिसका किसी ने नाम भी न सुना हो उसकी भस्म लिख कर देते है जिस पर कीमत ज्यादा से ज्यादा लिखी हो। वास्तव में यह भस्म नहीं भटटी की राख होती है। लुटेरे शाम को भस्म की कीमत का 60 % कमीशन कैमिस्ट से लेते है। भोले-भाले रोगी को शक नहीं होता और वो समझता है कि डाक्टर ने सिर्फ फीस ही ली है। ऐसी दवाएं रोगी को धोखा देने के लिए लिखी जाती है
- 2. ऐसी भस्म मंगवा कर रोगी के सामने मिला देते है ताकि रोगी दवाई वापिस न करे और दवाई की कीमत वापिस न लें। ऐसी हरकते इसलिए की जाती है कि इन्हे मालूम होता है कि जो दवाई दी है उसका असर तो होना नहीं, कंही रूपए वापिस न देने पड़ जाएं। मतलब हर तरफ लूट ही लूट।
- 3. धूर्तता इतनी कि रोग हो या ना हो भस्म धक्के से दी जाती है या ईलाज में जरूरत ही ना हो। वैज्ञानिक तौर पर साबित हो चुका है कि 50 वर्ष से पहले सैक्स के किसी भी रोग में भस्म की जरूरत ही नहीं होती। रूपए लूटने के लिए बेकार और ज्यादा कीमत वाली दवाएं चेपी जाती है।
- रोग मानसिक कारणो से है तो भस्म रोगी को ही भस्म कर देगी क्ंयूकि रूपए लुट गए, आर्थिक, मानसिक, शारिरिक शोषण हो गया तो मानसिक रोग और बड़ेगा तो रोगी ही भस्म होगा।
- अनपढ़ता, अज्ञानता सैक्स रोगों का मुख्य कारण है।
- 30 मिंट में सैक्स रोग चैकअप और सही जानकारी से ठीक होना शूरू हो जाता है।
- सैक्स रोगों का ईलाज भी वैसे ही होता है जैसे सभी रोगों का होता है, पहले चैकअप और टैस्ट उसके बाद ईलाज। यदि ईलाज का तरीका अलग होगा तो 100 % ठगी होगी। पैकेट बंद दवाएं मंगवानी मूर्खता के सिवा कुछ नहीं। पैकेट बंद दवाई मंगवाने वाला तो इसलिए मंगवाता है कि डाक्टर के पास शर्म के कारण जाना नहीं चाहता। दवाई भेजने वाले को मालूम है कि जो हमसे दवाई मंगवा रहा है वो अपने रोग को गुप्त रखना चाहता है। इसलिए वो भी रूपए ज्यादा से ज्यादा लेते है और दवाई के नाम पर भटटी की राख या सस्ता चूर्ण और सरसो का तेल शीशी में डाल कर और लेवल चिपका कर भेज देते है। रोगी रोता रहता है कि दवाई असर नहीं करती, दवाई तो असर करेगी जब रोग के अनुसार ईलाज किया जाएं।
- सैक्स से मनुष्य पैदा होता है और सैक्स से डर कर, शर्मा, घबरा कर अपना जीवन खराब कर लेता है। यदि आपके माता-पिता शर्म करते तो आप कैसे पैदा होते। शर्म, डर, घबराहट से ही आदमी लुटता है और यही रोग ठीक होने में सबसे बड़ी रूकावट है।
आधुनिक और भौतिक युग में सच्चाई पर भरोसा नहीं रहा। इसलिए रोगों में बढ़ौतरी हो रही है। गुमराह करने वाले विज्ञापनों ने झूठ को सच बना दिया है।
95% सैक्स समस्याएं दवाई के बगैर ठीक करें। सैक्स ज्ञान की किताब वैबसाइट www.pshc.in पर पढ़े और बगैर दवाई सैक्स रोग ठीक करें।
- शरीर का कोई भी अंग संसार की कोई भी दवाई मोटा या लंबा नहीं कर सकती।
- सैक्स की प्रमाणिक और वैज्ञानिक जानकारी न होना सैक्स रोगों का मुख्य कारण है।
- झूठे, लुभावने, डरावने और भ्रमित करने वाले विज्ञापन सैक्स रोगों का मुख्य कारण है।
- विज्ञापनों वाले कैपसूल, तेल, गोलियां, किट सैक्स रोगों को बड़ाते है।
- दवाखाना, फार्मेसियां, होटलों में इलाज लूट के अड्डे हैं जहां तंदरूस्त को भी रोगी बनाकर उसे आत्महत्या के लिए मजबूर किया जाता है या हमेशा के लिए मानसिक रोगी बना दिया जाता है। विज्ञापनों में अपनी फोटो और भगवान का नाम बार-बार दोहराने वाले डाक्टरों के भेष में लुटेरे है।
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अपनी तुलना किसी से ना करें।
* अखबारों और रसालों में रोजाना के गुमराह करने वाले विज्ञापन जिनमें सैक्स रोगों के ईलाज केनाम पर मूर्ख बनाया जाता है।
* गारंटी सब से आसान तरीका है भोले-भाले और अनपढ़ लोगों को गुमराह करके लूटने का। चिकित्सा विज्ञान के नियमो के अनुसार किसी भी रोग के ईलाज की गारंटी देना अपराध है।
- प्राकृतिक तौर पर अंडकोष एक छोटा और दूसरा बड़ा होता है। लेकिन डाक्टरों के भेष में लुटेरे इसे भी खतरनाक रोग बता देते है जबकि यह कुदरती होते है। यह याद रखना जरूरी है कि इनमें दर्द, साजिश, गिल्टी है तो डाक्टर से परार्मश जरूर लें।
- कई बार जवानी आते ही लड़को की छाती में थोड़ा-थोड़ा दर्द होता है या छाती बड़ी हो जाती है। इससे कई लड़के यह महसूस करते है। कि किसी को मालूम हुआ तो मजाक बन जाएगा और बेइज्जती होगी। ऐसा होना कोई रोग नहीं होता और कुछ दिनों के बाद अपने आप ही ठीक हो जाता है।
- लिंग का आकार बढ़ जाता है तो कई नवयुवक घबरा जाते है।
- आमतौर पर तंदरूस्त आदमी के लिंग का आकार उत्थित होने पर 3 से 6 इंच ही होता है।
- एक बार वीर्य बनना शुरू हो जाए तो सारी उम्र बनना बंद नहीं होता। पौष्टिक भोजन कम खाने से कमी आ सकती है।
- जो भी चीज हम हर रोज खाते-पीते है उससे ही हमारे शरीर में खून, चर्बी, मांस, हड्डिया, वीर्य अपने आप बनता है।
- जो लोग कहते है कि 100 बूंद खून बराबर एक बूंद वीर्य की तो कोरी बकवास है। जिसका सबूत है कि एक बार के संभोग में तकरीबन तीन मिलीलीटर वीर्य निकलता है और एक मिलीलीटर में 16 बूंद होती है। इसका मतलब एक बार के संभोग में 48 बूंद वीर्य निकला और एक बूद में 100 बूंद खून तो एक बार के संभोग में 4800 बूंद खून खत्म हुआ यानि कि 300 मिलीलीटर खून एक बार के संभोग में खत्म हुआ। नई-नई शादी होने पर आदमी महीने में 30 बार तो संभोग करता है और खून खर्च हुआ 9000 मिलीलीटर यानि कि 9 लीटर। तंदरूसत आदमी में खून की कुल मात्रा 4 लीटर ही होती है। शादी के एक महीने बाद ही आदमी खत्म, लेकिन ऐसा नहीं होता। यदि वीर्य से ही खून बनता हो तो औरतों में वीर्य क्यों नहीं बनता। इसलिए कि वीर्य आदमी की जनेनिद्रियों का स्त्राव है और कुछ नहीं।
- लिंग के उपर नीली नसे होना कोई रोग नहीं। आदमी के सारे शरीर में नसे होती है और नसो से ही खून सारे शरीर में दौरा करता है। शरीर पर चरबी की मात्रा ज्यादा होने से नसे नहीं दिखती और लिंग की चमड़ी पतली होती है और चर्बी नहीं होती। इसलिए ही नसे उभरी और नीले रंग की दिखती है। ये कोई रोग नहीं होता।
- एक बार में 3 से 5 मिलीलीटर वीर्य ही निकलता है ज्यादा नहीं।
- सैक्स की सच्चाई जानने के लिए हिंदी, पंजाबी, अंग्रेजी में किताब पढ़ने के लिए किताब पर क्लीक करें।
- आप बिना झिझक या हिचक फोन पर शाम 5 बजे से रात 8 बजे तक परामर्श ले सकते है।
आदमी के दुःखों का कारण है सच्चाई पर विश्वास न होना
हर आदमी झूठ और अंधविश्वास में उलझने के कारण दुःखी है लेकिन इस में से निकलना नहीं चाहता। क्ंयोकि आदमी उसी के पास जाता है जो उसे खुश करने या उसके मन में आई बात पूरी करने का दावा करें चाहे उसकी आड़ में किसी भी प्रकार का ज्यादा से ज्यादा शोषण करें। उस पंडित या बाबे के पास भीड़ होगी जो पुत्र देने का दावा करेगा और ज्ञानवान एंव सच बोलने वाले के पास कोई क्ंयो जाऐगा क्ंयोकि उसने तो कहना है कि लड़का और लड़की प्रमात्मा के हाथ है। बे-औलाद को औलाद देने का दावा करने वाले के पास ही लोग जाऐगे चाहे पति के वीर्य में शुक्राणु ही न हो या निल हो और जो सच कहेगा कि इसका कोई ईलाज नहीं तो उसे यही सुनने को मिलेगा कि इसे कुछ नहीं मालूम। विदेश भेजने के नाम का दावा करने वाले के पास लोग जाऐगे चाहे बाद में रोते रहे। आदमी को मालूम है कि यह काम गैर कानूनी है या नहीं हो सकता और फिर भी रूपया और समय बर्बाद करता है तो परिणाम मानसिक रोगी या आत्महत्या।